Opinion- बीजेपी जीत रही है, इस मुगालते में मत रहें, खुद पार्टी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही

लेखक : आर. जगन्नाथन2024 के आम चुनावों में वोटिंग का दौर शुरू हो चुका है। ऐसे में एक पुरानी कहावत है, 'अंडे से पहले मुर्गियां नहीं गिननी चाहिए', ये बात पूरी तरह लागू होती है कि विजेता कौन बनेगा। व्यापक सहमति से ऐसा लग रहा कि न केवल नरेंद्र मोदी, सरकार

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लेखक : आर. जगन्नाथन2024 के आम चुनावों में वोटिंग का दौर शुरू हो चुका है। ऐसे में एक पुरानी कहावत है, 'अंडे से पहले मुर्गियां नहीं गिननी चाहिए', ये बात पूरी तरह लागू होती है कि विजेता कौन बनेगा। व्यापक सहमति से ऐसा लग रहा कि न केवल नरेंद्र मोदी, सरकार में वापस आएंगे, बल्कि 2019 की तुलना में शायद अधिक बहुमत के साथ सत्ता संभालेंगे। हालांकि, इतनी जल्दी ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। भले ही अभी संभावनाएं किसी विशेष नतीजे के पक्ष में लग रही हों। हम अंतिम वोट डाले जाने और मतगणना पूरी होने तक किसी नतीजे की कल्पना नहीं कर सकते। जानिए ऐसा क्यों है।

● सबसे पहले, अतीत के विपरीत, हर दूसरे दिन टीवी चैनलों पर बहुत सारे ओपिनियन पोल दिखाई देते हैं। उनमें से कुछ वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए हो सकते हैं, लेकिन कुछ नहीं भी हो सकते हैं। वास्तव में, उनके फाइनल सीट के अनुमानों में व्यापक समानताएं किसी को भी चौंका सकती हैं। क्या यहां किसी प्रकार की पुष्टि में कोई पूर्वाग्रह तो काम नहीं कर रहा है। यह मानते हुए भी कि संभावित मतदाता पोलस्टर्स को बता रहे हैं कि वे वोटिंग के दिन वास्तव में क्या कर सकते हैं। मतदाता की ओर से EVM का बटन दबाने से पहले ही वोटिंग वरीयताओं को सीट जीत में बदलने के खतरों को कम करके नहीं आंका जा सकता है।
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● दूसरा, मौसम विभाग ने इस साल भीषण गर्मी पड़ने का अनुमान लगाया है, जिसमें देश के कुछ हिस्सों में लू भी चलेगी। इसका असर मतदान पर पड़ सकता है। बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी के समर्पित या हाशिए पर खड़े मतदाता या बीजेपी के विरोधी इस दौरान घर पर ही रहेंगे। हम यह तब तक नहीं जान सकते जब तक मतदान का दिन नहीं आ जाता। यह एक ऐसी अनिश्चितता है जिसका सभी दलों को सामना करना पड़ता है। (इसके अलावा, यह दुख की बात है कि लगभग एक अरब मतदाताओं को भीषण गर्मी के बीच मतदान केंद्रों पर जाना पड़ता है। इसमें बदलाव होना चाहिए।)

● तीसरा, पोलस्टर्स और कुछ टीवी एंकरों के विपरीत, बीजेपी ऐसा व्यवहार नहीं कर रही है जैसे चुनाव जीत लिया गया हो। जबकि वे स्पष्ट रूप से सार्वजनिक रूप से आत्मविश्वास दिखा रहे हैं, उन्होंने निश्चित रूप से इस चुनाव को हल्के में नहीं लिया है। अन्यथा पीएम मोदी दिन-रात पसीना नहीं बहा रहे होते। कमजोर राज्यों में कई सहयोगियों और दलबदलु नेताओं की तलाश जारी है। एक ऐसी पार्टी के रूप में जो मूड में बदलाव को देखने के लिए कई बार निजी तौर पर मतदाताओं का सर्वेक्षण करती है, यह हमें कुछ बताता है। 2024 अभी भी तय नहीं हुआ है। 400-पार का नारा प्रतिबद्ध वोटिंग के लिए एक स्पष्ट आह्वान हो सकती है।

● चौथा, बड़े राज्यों में मतदान की प्रकृति (बहुत कम राज्यों में एक दिन में मतदान होता है) का अर्थ है कि पहले चरणों में मतदान बाद के चरणों में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से रुझानों को प्रभावित कर सकता है। अनिश्चित लोग पहले चरण में संभावित विजेता का समर्थन करने का विकल्प चुन सकते हैं, जबकि जो लोग (अनुमानित) शुरुआती रुझानों के खिलाफ हैं, वे अपने प्रतिद्वंद्वी को सत्ता में आने से रोकने के लिए बाद के चरणों में विरोध के साथ मतदान कर सकते हैं।


पार्टियों के पास खुद अलग-अलग फेज की वोटिंग में गियर बदलने और खास संदेश देने का विकल्प होता है। 2009 में, कांग्रेस पार्टी के नेता (दिवंगत) वाईएस राजशेखर रेड्डी ने पहले चरण में तेलंगाना के पक्ष में भाषण दिए। हालांकि, अगले फेज में आक्रामक रूप से अलग आंध्र राज्य की वकालत की। उन्होंने दोनों चरणों में जीत हासिल की।

पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में, जहां एक ही मुद्दे (उदाहरण के लिए, सीएए) पर अलग-अलग बातें सुनने के लिए कई निर्वाचन क्षेत्र हैं। अलग-अलग फेज में ये संदेश अलग-अलग हो सकते हैं। इसका मतलब यह है कि इस बार न केवल अलग-अलग राज्य, बल्कि एक ही राज्य के भीतर अलग-अलग क्षेत्र अलग-अलग तरीके से मतदान कर सकते हैं। इससे अप्रत्याशित नतीजों की संभावना का पता चलता है। (इसके अलावा, फिर से यह पूछना चाहिए कि क्या कई अलग फेज में मतदान के बावजूद, वोटिंग छह लंबे हफ्तों तक चलना चाहिए?)

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● पांचवां, मोदी के प्रभुत्व के डर से क्षेत्रीय दल इस बार बीजेपी की जीत को रोकने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे। तृणमूल कांग्रेस से लेकर AIADMK, DMK, BJD, भारत राष्ट्र समिति, शिवसेना (UBT), NCP (शरद पवार) और दिल्ली और पंजाब में AAP तक, बीजेपी का डर बहुत ज्यादा होगा। खासकर तब जब उनके कुछ वरिष्ठ नेता जेल में हों या प्रवर्तन निदेशालय की नजर में हों। हम नहीं जानते कि जब दल मुश्किल में पड़ जाएंगे, तो वे क्या करेंगे।

● छठा, सहयोगियों के बीच वोट ट्रांसफर का अनुमान लगाना भी मुश्किल है। उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन को 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के सामने आए विरोधाभासों का सामना नहीं करना पड़ सकता है, लेकिन महाराष्ट्र में एमवीए को इस बात का अहसास होगा कि उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व मतदाता कांग्रेस को वोट देंगे या शरद पवार को। और इसके विपरीत, शिवसेना और एनसीपी में विभाजन से मतदाताओं की ऐसी दुविधाओं को हल करना और भी मुश्किल हो जाएगा। दिल्ली में, बीजेपी के डर से कांग्रेस और आप के मतदाता साथ मिलकर काम करने के लिए अधिक इच्छुक हो सकते हैं, लेकिन यह निश्चित नहीं है क्योंकि हर मतदाता जानता है कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव सिर्फ 10 महीने दूर हैं और दोनों दल अलग-अलग कोनों से लड़ेंगे।

● सातवां, कुछ राज्यों में न्यायिक कार्रवाई से फर्क पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, अगर अदालतें केजरीवाल सहित वर्तमान में जेल में बंद आप के सभी वरिष्ठ नेताओं को रिहा कर देती हैं, तो दिल्ली के मतदाताओं पर क्या असर होगा? दिल्ली में छठे चरण में 25 मई को मतदान होगा। क्या उस समय सहानुभूति मतदाताओं को प्रभावित करेगी? इसका मतलब यह नहीं है कि सभी पोलस्टर गलत हैं। या यह कि बीजेपी इस बार भी हार जाएगी, जैसा कि 2004 में ओपिनियल पोल्स में पसंदीदा घोषित किए जाने के बाद भी वाजपेयी के साथ हुआ था। लेकिन यह मान लेना कि 2024 में बीजेपी की जीत पक्की है, जल्दबाजी होगी। बेहतर होगा कि 1 जून तक इंतजार किया जाए, जब एग्जिट पोल आएंगे। या फिर बेहतर होगा कि 4 जून तक इंतजार किया जाए, जब चुनाव आयोग हमें सीटों की अंतिम संख्या बताएगा।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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